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जैन धर्म में संथारा प्रथा: मृत्यु को महोत्सव के रूप में मनाने की अनोखी परंपरा

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संथारा प्रथा का परिचय

जैन धर्म में संथारा प्रथा का महत्व

संथारा प्रथा का महत्व: हर धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक की विशेष परंपराएँ होती हैं। जैन धर्म में एक अनोखी प्रथा है, जिसमें मृत्यु को उत्सव की तरह मनाया जाता है। जैन अनुयायी मृत्यु को शांति और संतोष के साथ स्वीकार करते हैं और इस दौरान अन्न-जल का त्याग करते हैं। इसे 'संथारा' कहा जाता है। आइए, इस प्रथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

संथारा, जिसे मरणव्रत या सल्लेखना भी कहा जाता है, एक धार्मिक प्रक्रिया है, जिसे मुख्यतः जैन अनुयायी अपनाते हैं। यह एक गंभीर व्रत है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम क्षणों में शारीरिक आवश्यकताओं का त्याग कर आत्मशुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में बढ़ता है। यह आत्महत्या नहीं है, बल्कि एक गहन धार्मिक अनुभव है।


संथारा का ऐतिहासिक संदर्भ संथारा का ऐतिहासिक महत्व

संथारा प्रथा का उल्लेख जैन ग्रंथों में दूसरी से पांचवी शताब्दी तक मिलता है। 'रत्नकरंड श्रावकाचार' जैसे ग्रंथों में इस प्रथा का विस्तार से वर्णन किया गया है।


सम्मेद शिखरजी और संथारा सम्मेद शिखरजी का महत्व

झारखंड में स्थित जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित करने के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए। इस आंदोलन के दौरान जैन मुनियों ने संथारा ग्रहण किया, जो जैन समाज के लिए एक महत्वपूर्ण घटना बनी।


मरणव्रत की प्रक्रिया मरणव्रत की प्रक्रिया

मरणव्रत की प्रक्रिया संयमित और धीरे-धीरे अपनाई जाती है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है:

संकल्प लेना: व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से अपने अंतिम समय के लिए तैयार होता है। यह संकल्प स्वैच्छिक होता है।

आहार का त्याग: व्यक्ति पहले ठोस भोजन का त्याग करता है, फिर तरल आहार और अंत में पानी भी छोड़ देता है। यह प्रक्रिया कुछ दिनों से लेकर महीनों तक चल सकती है।


मरणव्रत का उद्देश्य मरणव्रत का उद्देश्य

मरणव्रत का मुख्य उद्देश्य आत्मा का मोक्ष है। यह व्यक्ति को शारीरिक इच्छाओं से मुक्त कर आत्मा की शुद्धि की दिशा में ले जाता है।


कानूनी विवाद संथारा पर कानूनी विवाद

संथारा पर कई कानूनी विवाद उठ चुके हैं। 2015 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इसे आत्महत्या की श्रेणी में डालते हुए अवैध घोषित किया था। हालांकि, जैन समाज ने इसका विरोध किया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां इसे धार्मिक स्वतंत्रता के तहत मान्यता दी गई।


समर्थन और आलोचना संथारा के समर्थन और आलोचना

संथारा के समर्थक इसे धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा मानते हैं, जबकि आलोचक इसे मानवाधिकार का उल्लंघन मानते हैं।


संथारा की अन्य धार्मिक समानताएँ अन्य धर्मों में समानताएँ

संथारा जैसी प्रथा अन्य धर्मों में भी पाई जाती है, जहां व्यक्ति आत्मा की शुद्धि के लिए विशेष प्रक्रियाएँ अपनाते हैं।


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